Friday, January 7, 2011

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं,तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं,...

बचपन के दिनों में जब में १० वि क्लास में था तब ये गीत में और मेरा फ्रेंड कुंदन सिंह बोरा बहुत सुना करते थेआज इस घटिया जगह काम करते हुए जब मेरा मन उदास है जब मुझे बहुत अकेला पण महसूस हो रहा है तब जाने कहा से मेरे मन में ये गीत बार बार अपने आप ही बज सा रहा है
मेरा मन बार बार इसे गुनगुनाने को को कर रहा है तो मैंने सोचा दोस्तों , क्यों में इसे अपने ब्लॉग पे ही चिपका दूआओ हम साथ मिल के इसे गुनगुनाएंमैंने इसके बोल जहा तक है सही लिखने की कोशिस की है फिर भी किसी गलती के लिए माफ़ करनाये गीत मेरे दिल के बहुत ही करीब है ...




तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं,
हैरान हूं मैं..

तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं,
परेशान हूं मैं..

जीने के लिये सोचा ही नहीं, दर्द संभालने होंगे..
मुस्कुराए तो, मुस्कुराने के कर्ज उतारने होंगे..
मुस्कुराए कभी तो लगता है, जैसे होंठों पे कर्ज रखा हो..

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं,हैरान हूं मैं..
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं,
परेशान हूं मैं..


जिंदगी तेरे गम ने हमें रिश्ते नये समझाये..
मिले जो हमें, धूप में मिले, छांव के ठंडे साये..
ला ला ला, ला ला ला ला...............

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं,
हैरान हूं मैं..

तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं,
परेशान हूं मैं..

आज अगर भर आयी हैं, बूंदे बरस जाएगी..
कल क्या पता इन के लिये, आंखे तरस जाएगी..
जाने कब गुम हुआ, कहां खोया, एक आंसू बचा के रखा था..

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं,
हैरान हूं मैं..
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं,


इस गीत को डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Sunday, January 2, 2011

नए वर्ष के प्रथम चरण में...........

नए वर्ष के प्रथम चरण में
लिखना प्रारंभ किया कविता
कविता मेरे विचारो की जैसे
हिमालय की हो सरिता

इस नए साल में उम्मीदों का
बुनना है नया ताना बाना
ढूँढना है उस रास्ते को
जिस से मैं हु अंजना

वो रास्ता जो पहुंचा दे मुझको मेरी मंजिल तक
जो जाने कहाँ है मेरी, इन आँखों से ओझिल
जिसकी राहों पे चलते चलते
पाऊँ हुए मेरे बोझिल

ऐ मित्र मेरे, ऐ सखी मेरी
मुझको अब जरुरत है तेरी,
तू सदात निभाना बस मेरा
मैं पा लूँगा मंजिल मेरी
मैं ढूंढ ही लूँगा अब उसको
मैं ढूंढ ही लूँगा उसका पता
नए वर्ष के प्रथम चरण में
लिखना प्रारंभ किया कविता...........